17 मई 2025 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसका असर उत्तर प्रदेश में सरकारी शिक्षक पदों के लिए हजारों अभ्यर्थियों पर पड़ा है। यह मामला जामिया उर्दू, अलीगढ़ द्वारा प्रदान की जाने वाली दो विशेष शैक्षिक योग्यताओं—आदिब-ए-कामिल और मौल्लिम-ए-उर्दू—की मान्यता और वैधता पर केंद्रित था। इन डिग्रियों का उपयोग लंबे समय से उम्मीदवार उत्तर प्रदेश बेसिक एजुकेशन बोर्ड (UPBEB) के तहत उर्दू शिक्षण के लिए असिस्टेंट टीचर की भर्ती में पात्रता साबित करने के लिए करते आ रहे थे। लेकिन अदालत के इस निर्णय ने इन डिग्रियों की वैधता और अकादमिक मान्यता पर सवाल खड़ा कर दिया है, जिससे इनके धारकों को राज्य शिक्षक पदों के लिए आवेदन करने से effectively रोका गया है।
उच्च न्यायालय के निर्णय, मामले की पृष्ठभूमि, जामिया उर्दू और उसके कार्यक्रमों की स्थिति तथा इस फैसले के शैक्षिक नीति, प्रभावित उम्मीदवारों और राज्य की भर्ती प्रक्रियाओं पर व्यापक प्रभावों का विश्लेषण है।
1. विवाद की पृष्ठभूमि
जामिया उर्दू, अलीगढ़ की स्थापना 1939 में उर्दू भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से हुई थी। इसने वर्षों से मौल्लिम-ए-उर्दू जैसे कार्यक्रम संचालित किए, जो उर्दू शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए थे, और आदिब-ए-कामिल, जिसे उर्दू साहित्य में स्नातक डिग्री के समकक्ष माना जाता था।
कई दशकों तक इन डिग्रियों के धारकों को उत्तर प्रदेश में शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति मिली। विशेष रूप से, मौल्लिम-ए-उर्दू को एक व्यावसायिक शिक्षक प्रशिक्षण योग्यता के रूप में स्वीकार किया जाता था, जबकि आदिब-ए-कामिल को अकादमिक पात्रता के लिए बीए उर्दू के समकक्ष माना जाता था।
हालांकि, जब सवाल उठे कि ये डिग्रियां विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) द्वारा मान्यता प्राप्त डिग्रियों के समकक्ष हैं या नहीं, तो इन डिग्रियों को लेकर कानूनी जांच शुरू हुई। यह विवाद खासतौर पर 2019 में असिस्टेंट टीचर भर्ती (69,000 पदों) के दौरान और बाद के चयन में उभरा, जिसमें सवाल पूछा गया कि क्या इन डिग्रियों को आरटीई एक्ट, 2009 के तहत बी.एड./डी.एल.एड. जैसी मान्यता प्राप्त योग्यताओं के बराबर माना जा सकता है।
2. उठाए गए मुख्य कानूनी प्रश्न
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित अहम सवालों पर विचार किया:
a . क्या जामिया उर्दू, अलीगढ़ भारत के कानून के तहत मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय है?
b . क्या "मौल्लिम-ए-उर्दू" और "आदिब-ए-कामिल" डिग्रियां शिक्षक प्रशिक्षण या अकादमिक डिग्रियों जैसे बी.एड. या बीए उर्दू के बराबर हैं?
c . क्या ये योग्यताएं NCTE और UGC द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा करती हैं, ताकि सरकारी स्कूलों में शिक्षण पदों के लिए नियुक्ति हो सके?
d . क्या सरकार द्वारा पूर्व में इन डिग्रियों को स्वीकार किया जाना नियुक्ति का अधिकार बनाता है?
ये प्रश्न विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956, राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद अधिनियम, 1993, और उत्तर प्रदेश बेसिक एजुकेशन विभाग द्वारा जारी भर्ती नियमों के व्याख्यान पर आधारित थे।
3. अदालत का विश्लेषण और निष्कर्ष
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जामिया उर्दू की स्थिति और संबंधित डिग्रियों की प्रकृति का गहराई से विश्लेषण किया। मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार हैं:
(a) जामिया उर्दू मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय नहीं है
अदालत ने कहा कि जामिया उर्दू न तो संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय है और न ही UGC अधिनियम की धारा 3 के तहत डीन विश्वविद्यालय। यह UGC या NCTE की मान्यता प्राप्त संस्थाओं की सूची में नहीं है। इसलिए, यह भारतीय कानून के अनुसार वैध डिग्रियां प्रदान करने के लिए सक्षम नहीं है।
(b) डिग्रियां बी.एड./डी.एल.एड. के बराबर नहीं हैं
मौल्लिम-ए-उर्दू को NCTE द्वारा शिक्षक प्रशिक्षण की आधिकारिक योग्यता के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। इसी तरह, आदिब-ए-कामिल को भी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की जाने वाली स्नातक डिग्री के समान नहीं माना जा सकता। न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार ने इसे कानूनी रूप से मान्यता दी है।
(c) पूर्व प्रथा कानूनी अधिकार नहीं बना सकती
अदालत ने कहा कि प्रशासन द्वारा पहले इन डिग्रियों को स्वीकार करना कानूनी अधिकार नहीं बनाता। यह एक प्रशासनिक त्रुटि थी जिसे जारी नहीं रखा जा सकता। अभ्यर्थियों को पूर्व में हुई गलत व्याख्या के आधार पर अधिकार नहीं मिल सकता।
4. प्रभावित अभ्यर्थियों पर प्रभाव
यह फैसला उन हजारों उम्मीदवारों को सीधे प्रभावित करता है, जिन्होंने अपनी मौल्लिम-ए-उर्दू और आदिब-ए-कामिल डिग्रियों के आधार पर शिक्षक पदों के लिए आवेदन किया था।
कई उम्मीदवारों ने:
a . CTET और UPTET जैसे शिक्षक पात्रता परीक्षा दी है।
b . लिखित परीक्षा और साक्षात्कार पास कर नियुक्ति के लिए चुने गए हैं।
c . नियुक्ति पत्र प्राप्त किए हैं या सत्यापन के अंतिम चरण में थे।
फैसले के बाद उनकी योग्यताएं अमान्य मानी गईं, जिससे वे भर्ती प्रक्रिया से बाहर हो गए। यह स्थिति उनके लिए मानसिक और सामाजिक संकट उत्पन्न कर रही है, क्योंकि इनमें से अधिकांश अभ्यर्थी वंचित वर्ग से आते हैं और वर्षों का मेहनत उन्होंने इस दिशा में लगाई थी।
5. व्यापक कानूनी और नीति संबंधी परिणाम
इस निर्णय के शिक्षा प्रबंधन और नियमों की स्पष्टता के लिए कई महत्वपूर्ण प्रभाव हैं:
(a) UGC और NCTE की अधिकारिता की पुष्टि
अदालत ने UGC और NCTE को उच्च शिक्षा और शिक्षक प्रशिक्षण के लिए सर्वोच्च नियामक माना। कोई भी निजी संस्था, जब तक इसे ये निकाय मान्यता न दें, वैध डिग्री या शिक्षक योग्यता नहीं दे सकती।
(b) शिक्षक पात्रता मानदंडों में समानता की आवश्यकता
अदालत ने शिक्षक भर्ती में पारदर्शी और एकरूप मानदंडों की आवश्यकता पर जोर दिया। डिग्रियों की समानता को लेकर असमंजस से मुकदमेबाजी और करियर अस्थिरता होती है।
(c) राज्य की जिम्मेदारी
अदालत ने कहा कि राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शैक्षिक न्याय हो। जो उम्मीदवार जामिया उर्दू की डिग्रियों पर भरोसा करके तैयारी कर रहे थे, उनके लिए संक्रमणकालीन सहायता, पुनः प्रशिक्षण, या वैध योग्यताओं के साथ भविष्य की भर्ती में समावेश की व्यवस्था होनी चाहिए।
6. हितधारकों की प्रतिक्रिया
(a) अभ्यर्थी और संबंधित संघ
उर्दू शिक्षकों के प्रतिनिधि संघों और अभ्यर्थियों ने फैसले को निराशाजनक और अन्यायपूर्ण बताया है। वे उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट में अपील की योजना बना रहे हैं। कुछ ने उत्तर प्रदेश सरकार से मांग की है कि जामिया उर्दू की डिग्रियों को रेट्रोएक्टिव मान्यता या एक बार का छूट दिया जाए।
(b) जामिया उर्दू की प्रतिक्रिया
जामिया उर्दू ने अपनी विरासत की रक्षा की है और कहा है कि उसे स्वतंत्रता पूर्व भारत सरकार से मान्यता प्राप्त थी तथा यह एक सांस्कृतिक और भाषाई संस्था के रूप में प्रतिष्ठित है। लेकिन यह मान्यता आधुनिक कानूनों के तहत वैधता का पर्याय नहीं है। संस्थान अब मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों के साथ भागीदारी कर वैध डिग्रियां प्रदान करने की संभावना तलाश सकता है।
(c) उत्तर प्रदेश सरकार की स्थिति
सरकार ने उच्च न्यायालय के निर्णय का समर्थन किया है और राष्ट्रीय मानकों के पालन पर जोर दिया है। अधिकारियों ने कहा है कि आगे की भर्ती में केवल NCTE और UGC द्वारा मान्य डिग्रियों को स्वीकार किया जाएगा।
7. अपील की संभावना और भविष्य की दिशा
यह फैसला अंतिम नहीं हो सकता। प्रभावित अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर सकते हैं। वहां न्यायालय क़ानून की कड़ाई और न्यायसंगतता के बीच संतुलन बनाएगा, खासकर उन उम्मीदवारों के लिए जो सच्चे विश्वास में थे।
इसके साथ ही मांग बढ़ रही है:
• NCTE और UGC द्वारा स्पष्ट और बाध्यकारी समानता नोटिफिकेशन जारी करने की।
• शैक्षिक संस्थानों की स्थिति के प्रति सार्वजनिक जागरूकता अभियान।
• डिग्रियों के निरस्तीकरण से प्रभावित लोगों के लिए पुनर्वास की व्यवस्था।
17 मई 2025 का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय शिक्षा की स्वायत्तता, नियामक नियंत्रण और संवैधानिक न्याय के बीच जटिल संबंधों का परिचायक है। यह अवैध डिग्रियों को अमान्य कर क़ानून के शासन की पुष्टि करता है, पर साथ ही राज्य की जिम्मेदारी पर सवाल उठाता है कि इस तरह की संस्थागत अस्पष्टताओं को रोकने में वह कैसे बेहतर भूमिका निभा सकता है।
आगे चलकर, जामिया उर्दू, नियामक निकायों, राज्य सरकार और न्यायपालिका के बीच समन्वित प्रयास आवश्यक होंगे ताकि इस संकट का समाधान निकाला जा सके। शिक्षा की गुणवत्ता और विद्यार्थियों के हित दोनों को ध्यान में रखकर उत्तर प्रदेश और भारत में शिक्षा सुधार संभव होगा।
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